Sanjay Tiger Reserve : मौसी के संरक्षण में शिकार और तैराकी के गुर सीख रहे शावक

आपस में है भाई का रिश्ता

बरसात के महीनों में संजय टाइगर रिजर्व और भी खूबसूरत लगने लगता है। समतल मैदान, घने जंगल, बारहमासी नदियों के साथ बरसाती नदी-नाले भी उफान पर होते हैं। बाघ के साथ अन्य जंगली जानवरों की चहलकदमी तेजी से बढ़ जाती है। खुद की सुविधा के लिए बाघ अपने ठिकाने भी बदलते हैं। नदी – नालों में भरे पानी में यह भरपूर मस्ती करते भी देखे जा रहे हैं। संजय टाइगर रिजर्व के कर्मचारी इनकी निगरानी कर रहे हैं। इतना ही नहीं बाघों के झुंड शिकार करते हुए देखे जा रहे हैं। खास बात यह है कि सभी बाघ एक ही परिवार के सदस्य हैं।

बता दें कि संजय टाइगर रिजर्व क्षेत्र की खूबसूरती बढ़ने के साथ ही यहां बाघों के रिश्ते भी मजबूत होते दिखाई दे रहे हैं। मां टी-18 की ट्रेन की टक्कर से मौत के बाद अनाथ तीन शावक अपनी मौसी टी-17 और टी 26 के साथ देखे जा रहे थे। इन दिनों मौसी टी-17 के तीन शावकों के साथ तीन अनाथ शावक जंगल में शिकार करते देखे जा रहे हैं।

यह है इनकी खूबसूरती

इस रिश्ते की खास बात यह है कि इनका झुंड एक साथ ही दिखाई दे रहा है। यह आपस में एक दूसरे की भाषा को भी समझ रहे हैं। जिसका नतीजा यह है कि सात की संख्या में यह साथ-साथ देखने को मिल रहे हैं। मौसी टी-17 अपने बच्‍चों के साथ अनाथ शावकों का भी संरक्षण कर रही है।

बारहमासी नदियों में कर रहे तैराकी

इन शावकों को बारहमासी नदियों में तैराकी करते और शिकार करते देखा जा रहा है। पर्यटक भी इन्हें देखकर रोमांचित हो रहे हैं। इनकी एकजुटता, परस्पर प्रेम, शिकार करने के लिए एक साथ टूट पड़ना यह रिश्ते अब जंगल में भी देखने को मिल रहे हैं।

यहां बनाया ठिकाना

संजय टाइगर रिजर्व जंगल विस्थापन के बाद बाघों के लिए नया ठिकाना बनता जा रहा है। टी-18 और टी-17 के शावक दुबरी रेंज के बहेरवार और खैरी झील वाले जंगल में देखे जा रहे हैं। बहेरवार नाम से पहले एक गांव हुआ करता था, जो अब विस्थापित हो चुका है।

इनका कहना

टी-17 और टी-18 के शावक साथ देखे जा रहे हैं। टी-17 संरक्षक है। यह शिकार करते देखे जा रहे हैं और पूरी तरह से स्वस्थ हैं। मानिटरिंग की जा रही है।

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