Successors of Shankaracharya : शंकराचार्य के दोनों उत्तराधिकारी मेधावी और शास्त्रार्थ में हैं निपुण
शंकराचार्य के उत्तराधिकारी को मेधावी, वेद, पुराण और वेदांत दर्शन, शास्त्रार्थ में निपुण होना चाहिए। दोनों ही उत्तराधिकारी इसमें निपुण हैं।
शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज के ब्रह्मलीन होने के बाद दंडी स्वामी सदानंद सरस्वती को द्वारका शारदा पीठ और स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद को ज्योतिषपीठ बद्रीनाथ का उत्तराधिकारी घोषित किया गया है। शंकराचार्य के उत्तराधिकारी को मेधावी, वेद, पुराण और वेदांत दर्शन, शास्त्रार्थ में निपुण होना चाहिए। दोनों ही उत्तराधिकारी इसमें निपुण हैं।
दंडी स्वामी सदानंद सरस्वती
दंडी स्वामी सदानंद सरस्वती को द्वारका शारदा पीठ का शंकराचार्य घोषित किया गया है। स्वामी सदानंद सरस्वती का जन्म 31 अगस्त 1958 को गोटेगांव तहसील के ग्राम करकबेल, बरगी में हुआ था। उनकी माता का नाम स्व. श्रीमती मानकुंवर देवी व पिता का नाम आयुर्वेदरत्न पं. विद्याधर अवस्थी था। गृहस्थ जीवन में उनका नाम रमेश अवस्थी था। प्रारंभिक शिक्षा बरगी व संस्कृत शिक्षा ज्योतिरीश्वर ऋषिकुल संस्कृत विद्यालय झौंतेश्वर में हुई। व्याकरण, न्याय, वेद, वेदांत की शिक्षा काशी में हुई। वह करीब 14 वर्ष की आयु में शंकराचार्य आश्रम में आए। गुरु चरणों में अटूट श्रद्धा भक्ति को देखते हुए शंकराचार्यजी ने आपको नैष्टिक ब्रह्मचारी की दीक्षा प्रयाग कुंभ में सन 1977 में दी। शंकराचार्यजी ने सदानंद ब्रह्मचारी का नाम देकर अपनी शक्तियां आशीर्वाद रूप में प्रदान कीं। 15 अप्रैल 2003 को काशी में शंकराचार्यजी द्वारा दंड संन्यास की दीक्षा देकर ब्रह्मचारी सदानंद को पूर्ण स्वामी सदानंद सरस्वती के रूप में धर्मप्रचार, धर्मादेश देने की आज्ञा प्रदान की।
दंडी स्वामी के गृहस्थ जीवन के चचेरे भाई नरेन्द्र अवस्थी ने बताया कि सदानंद जी समेत तीन भाई और तीन बहनें थीं। सदानंद जी सबसे छोटे हैं। उनसे बड़े दो भाई और तीन बहने हैं। कक्षा आठवीं की पढ़ाई बीच में ही छोड़कर वह आश्रम चले गए थे। उस समय उनकी उम्र करीब 14 वर्ष थी। सदानंद जी ने नरसिंहपुर में अपने चाचा श्ािवकुमार अवस्थी के यहां रहकर भी पढ़ाई की।
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद प्रतापगढ़ के हैं। उनका जन्म प्रतापगढ़ के पट्टी तहसील के ब्राह्मणपुर गांव में 15 अगस्त 1969 को हुआ। इनके पिता पं. रामसुमेर पांडेय और माता अनारा देवी अब इस दुनिया में नहीं हैं। इनका मूलनाम उमाशंकर है। इनकी प्राथमिक शिक्षा गांव के प्राइमरी स्कूल में हुई। उसके बाद वह परिवार की सहमति पर नौ साल की अवस्था में गुजरात जाकर धर्मसम्राट स्वामी करपात्री जी महाराज के शिष्य ब्रह्मचारी रामचैतन्य के सानिध्य में रहे। आप वहीं पर गुरुकुल में संस्कृत शिक्षा ग्रहण करने लगे। बाद में स्वामी स्वरूपानंद के सानिध्य में आने के बाद उनके ही साथ सनातन धर्म के संवर्धन में लग गए।
ब्राह्मणपुर में रह रहे स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद के बड़े भाई गिरिजा शंकर पांडेय कथावाचक हैं। आप शुरू से ही धार्मिक कार्यों में रुचि लिया करते थे। उनकी छह बहनें हैं। आप जब स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद के रूप में प्रख्यात होने लगे तो परिवार के साथ प्रतापगढ़ ही नहीं प्रदेश व देश का गौरव बढ़ा। धर्माचार्य ओम प्रकाश पांडेय अनिरुद्ध रामानुजदास बताते हैं कि स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद नव्यव्याकरण के मर्मज्ञ हैं। लेखक और चिंतक भी हैं। गंगा को निर्मल करने के अभियान व इसके लिए प्रताड़ना सहने के लिए भी उनको जाना जाता है। किसान देवता मंदिर के संस्थापक योगिराज सरकार ने भी स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती को सनातन धर्म का संवर्धक बताते हुए प्रसन्न्ता व्यक्त की है।