कौमी एकता की प्रतीक रामलीला : रजाकत अली मुनि विश्वामित्र बने आसिफ खान निभा रहे परशुराम की भूमिका

एकता की मिसाल है रामलीला

गोरखपुर की रामलीला एकता की प्रतीक रही है। पूर्व में केवट के किरदार में मुस्ताक कुरैशी काफी चर्चित थे। उनका अभिनय देखने आसपास के गांवों से लोग आते थे। शेरा भाईजान हनुमान के किरदार को जीवंत पेश कर अपने अभिनय का लोहा मनवा चुके हैं। कोदू खान सूर्पणखां, जुम्मन खान रामलीला में पात्र बनते थे। श्रीराम बारात के दिन कड्डो भाईजान द्वारा दुलदुल घोड़ी बनकर नृत्य करना आकर्षण का केंद्र बना रहता था। अब कुछ कलाकार उम्रदराज होने से मंचन में शामिल तो नहीं होते, लेकिन वे समाज के अन्य युवाओं को जोड़ने का काम जरूर करते हैं।

दूर-दूर से आते थे लोग

कस्बा की रामलीला को देखने छत्तीसगढ़ के गौरेला, बिलासपुर, रायपुर, शहडोल, जबलपुर, सिवनी, छिंदवाडा जिले से भी लोग आते थे। आसपास के गांवों के लोग तो सूर्यास्त के पहले आकर अपना स्थान जमा लेते और पूरी रात रामलीला देखते थे।

इनका कहना है

रामलीला का मंचन बंद होने से कलाकारों के साथ लोग भी मायूस थे, इस बार सभी ने रामलीला का मंचन शुरू करने का निर्णय लिया। चुनौतियां भी बहुत थीं। पुराने कलाकारों से भी बात की गई। इस बार नए युवक भी मंचन में जुड़े हैं। कस्बा के मुस्लिम धर्म के लोग भी रामलीला के मंचन में कई किरदार निशुल्क निभा रहे हैं। यह कौमी एकता का प्रतीक है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *