तारिक़ फ़तह चले गए ,उनका जाना दिल दुखा गया। तारिक से कभी मिला नही। मिलना भी नहीं चाहता था फिर भी तारिक एक दिलचस्प इंसान थे। टीवी के परदे पर उन्हें बहस-मुबाहिसा करते देखकर मजा आता था। अब दुनिया में मजेदार आदमी लगातार कम हो रहे हैं।
तारिक के हिंदी-उर्दू शब्दकोश में तमाम अर्थ है। उनके नाम के जितने भी अर्थ हो सकते हैं वे सब कहीं न कहीं थोड़े-बहुत तारिक फतह में मौजूद थे। तारिक का अर्थ होता है ,त्याग करनेवाला, छोड़नेवाला, अहंकारी, घमंडी, त्यागी,नदी आर-पार करने का महसूल,
नाव से नदी पार करने का भाड़ा,रात को आने वाला,रात को यात्रा करने वाला, रात्री भ्रमणकारी,हर वह चीज़ जो रात में निकले (इसीलिए चोर और राहगीर को भी कहते हैं)। प्रातःकाल में उदय होने वाला एक तारा, फ़ाल निकालने वाला, शकुन निकालने वाला,दुर्घटना, सख़्त हादिसा और इस्लाम का एक प्रसिद्ध सेनापति। तारिक फतह इन सब में से कुछ न कुछ थे।
तारिक पंजाबी थे,सिंध के करांची में पैदा हुए थे ,कनाडा के नागरिक थे लेकिन अपने आपको हिन्दुस्तानी कहने में फक्र महसूस करते थे। बहुत से लोगों की नजर में वे बुद्धिजीवी थे और बहुत से लोगों की नजर में लफ्फाज भी थे। लेकिन मेरी नजर में वे एक मस्त आदमी थे जो इस्लामी अतिवाद के ख़िलाफ़ बोलने और एक उदारवादी इस्लाम के पक्ष को बढ़ावा देने के लिये प्रसिद्ध थे। तारिक़ फ़तह दक्षिण एशिया और विशेष रूप से कट्टरपंथी भारतीय और पाकिस्तानी मुसलमानों की अलगाववादी संस्कृति के विरुद्ध भी बोलते थे, तथा वे समलैंगिक व्यक्तियों के समान अधिकारों और हितों के भी पक्षधर थे। साथ ही वे बलूचिस्तान में मानवाधिकार के हनन और पाकिस्तान द्वारा बलूचिस्तान में किये जा रहे ज़्यादतियों के विषय पर भी बोलते और लिखते थे और ‘आज़ाद बलूचिस्तान’ के पक्षधर के रूप में भी जाने जाते थे।
तारिक फतह को मैंने अपने हमवतन जावेद अख्तर के साथ चोंच लड़ाते देखा था। बड़ा मजेदार मुबाहिसा था वो । तारिक कभी-कभी जावेद साहब के सवालों से तिलमिला जाते और लगभग घिघियाने लगते थे लेकिन मैदान नहीं छोड़ते थे। खुद को नास्तिक कहने वाले जावेद अख्तर और पाकिस्तानी-कनाडाई लेखक तारिक फतेह की बीच विचारधारा और इस्लाम को लेकर जुबानी जंग का मजा असंख्य लोगों ने लिय। जावेद साहब ने तारिक फतेह से पूछा लिया था कि 1947 में उनके मां-बाप ने भारत के बजाय पाकिस्तान को क्यों चुना? बेचारे तारिक क्या जबाब देते ? बगलें झाँकने लगे थे।
जावेद साहब ने पूछा था कि ‘तारिक फतेह लगातार मुल्ला का इस्लाम बनाम अल्लाह का इस्लाम का जिक्र करते रहते हैं। ऐसे में मैं उनसे पूछना चाहता हूं कि क्या वह मानते हैं कि कुरान अल्लाह की किताब है और इसमें लिखे हुए एक-एक शब्द परम सत्य हैं। इधर-उधर न घुमाएं। हां या नां। तारिक तब भी बगलें झांकते दिखाई दिए। मुमकिन है कि बहुत से सवालों का जबाब तारिक साहब के पास न हो लेकिन वे थे दिलचस्प। उनके जैसे लोग कम ही होते है। वे साहसी थे जो इस्लाम को लेकर बोलते रहे और आजन्म बोलते रहे ,अन्यथा लोग तो दर के मारे इस्लाम की विसंगतियों पर अपना मुंह खोलने से भी कतराते हैं।
दरअसल तारिक फतह साहेब को सुर्ख़ियों में रहना आता था। आप उन्हें एक ख़ास किस्म का फेंकू भी कह सकते हैं,मुझे याद है कि एक मर्तबा तारिक फतह साहब ने ट्वीटर पर वाद-विवाद के दौरान एक महिला को जवाब देते हुए उसमें मोहम्मद अली जिन्ना को घसीट लिया.था, तारिक फतेह के ट्वीट को लेकर एक महिला ने उनसे पूछा कि नफरत भरी पोस्ट डालने के लिए उन्हें कितना पैसा दिया जाता है.? इस ट्वीट का जवाब देते हुए तारिक फतेह ने कहा, “पाकिस्तानी आंटी जरूर मुंबई में क्यों नहीं? क्या आपको गिर रहे पाकिस्तानी रुपये या उसके डैडी, भारत के रुपये की जरूरत है? जिन्ना मर गया, औलाद छोड़ गया मुंबई में.।
तारिक फतह साहब ने ‘ चेजिंग अ मिराज ‘ :’ द ट्रैजिक इल्लुझ़न ऑफ़ ऐन इस्लामिक स्टेट’ जैसी किताबें लिखी लेकिन मेरी बदनसीबी कि मैं उनकी एक भी किताब नहीं पढ़ी ।अगर पढ़ पाता तो मुमकिन है कि उनके बारे में और भी लिखता। वे जब-जब भारत आये उनसे मिलने की ख्वाहिश रही ,लेकिन अल्ला-ताला को शायद ये मंजूर न था कि दो लेखक आपस में मिलें ! वे मिलते तो मुमकिन था कि उन्हें और जान पाते। बहरहाल उनका जाना दुखी कर गया। वे सेनेटिक वर्सेस के लेखक सलमान रुश्दी नहीं थे। रुश्दी ने साल 1988 में एक और किताब लिखी थी जिसका नाम उन्होंने रखा सेटेनिक वर्सेस। उनकी इस किताब को लेकर पूरी दुनिया में खूब हंगामा हुआ। वो मुस्लिम कट्टरपंथियों के निशाने पर आ गए। किताब को लेकर बवाल और विवाद इतना बढ़ा कि लोग खून-खराबे पर उतर आए यहां तक कि उनकी जान पर भी बन आयी थी।
कुल जमा तारिक साहब की बहुत याद आएगी । तारिक साहब के प्रति मेरी विनम्र श्रृद्धांजलि। उन्हें ऊपर वाला उनके लायक स्थान दे,अपनी शरण में रखे।