कुँवर संग्रामसिंह बुंदेला का जन्म निवाड़ी के नजदीक रावली गांव में हुआ था। इनके पूर्वजों की रियासत अंग्रजों ने छीन ली थी, जिसके बाद ये अंग्रेजों को लूटने लगे और ‘डाकू संग्रामसिंह’ के नाम से मशहूर हुए।
1857 के स्वतंत्रता संग्राम में झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई ने कुंवर संग्रामसिंह को अपनी फौज में महत्वपूर्ण पद पर नियुक्त कर लड़ाई के समय खंडेराव द्वार पर तैनात किया।
रात के समय कुंवर ने कुछ अंग्रेजों को दुर्ग की तरफ गुप्त रूप से आते देखा, तो बिना रानी लक्ष्मीबाई की आज्ञा लिए ही अपनी टुकड़ी समेत द्वार खोलकर बाहर निकले और उन सिपाहियों को मारकर लौट आए।
इस घटना के अगले दिन रानी ने कुंवर को काफी सराहा। इसी दिन फिर लड़ाई हुई, जिसमें कुंवर संग्रामसिंह खंडेराव द्वार पर अपने साथियों समेत वीरगति को प्राप्त हुए।