ग्वालियर/ कांग्रेस नेता कमल नाथ, दिग्विजय सिंह और प्रियंका गांधी के व्यक्तिगत आरोप झेलते आ रहे केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए यह चुनाव उनके अंचल ग्वालियर-चंबल में किसी अग्नि परीक्षा से कम नहीं था। 2020 में हुए उपचुनाव को छोड़ दें तो 2018 के बाद भाजपा के साथ उनका यह पहला चुनाव था, जिसमें यह कहा जा रहा था कि इस चुनाव से सिंधिया का भाजपा में वजन तय होगा।
ग्वालियर-चंबल में भाजपा ने 2018 के मुकाबले अंचल में दोगुना सीटें जीती हैं। पहले इस क्षेत्र में सिंधिया के खुद चुनाव लड़ने की चर्चा थी लेकिन पार्टी ने उन्हें स्टार प्रचारक बनाकर करीब मुख्य रूप से इसी अंचल की जिम्मेदारी दी थी। सिंधिया ने चुनाव प्रचार भी धुआंधार किया।स्टार प्रचारक होने के नाते पार्टी ने उन्हें एक हेलीकाप्टर दे रखा है जो हर दिन सुबह-सुबह महल परिसर से ही उड़ान भर रहा था। उन्होंने आचार संहिता के बाद करीब 80 सभाएं अंचल की सीटों पर कीं। कई सीटों पर रोड शो भी किया।
पोलिंग एजेंट को टिकट वितरण के तुरंत बाद ग्वालियर, शिवपुरी,अशोकनगर,गुना की विभिन्न विधानसभा सीटों के मेरा बूथ सबसे मजबूत कार्यक्रमों की श्रृंखला शुरू हुई जो 20-30 अक्टूबर तक जारी रही। कार्यक्रम में मंच से भाषण देने की जगह वह उपस्थित बूथ कार्यकर्ताओं के बीच में जाकर ही अपनी बात कहते दिखे थे। पोलिंग एजेंटों को पेन कापी पर उनकी सीट पर जाकर बारीकियां नोट कराईं। उनकी शंका का समाधान भी किया।
रणनीति ऐसी कि कांग्रेस से उसके गढ़ ही छीन
ग्वालियर जिले की भितरवार,ग्वालियर दक्षिण और शिवपुरी की पिछोर सीट को लंबे समय बाद भाजपा ने कांग्रेस से छीन लिया है। पिछोर से कांग्रेस के केपी सिंह कक्कू के कारण भाजपा पिछले छह चुनावों से यहां हार का मुंह देख रही थी।
इस बार केपी के शिवपुरी से चुनाव लड़ने के कारण यहां भाजपा ने दोगुना ताकत से चुनाव लड़कर पिछोर अपने नाम कर लिया। इसी तरह भितरवार से कांग्रेस के लाखन सिंह लगातार पिछले पंद्रह सालों से जीतते आ रहे थे जिन्हें सिंधिया समर्थक मोहन सिंह राठौर ने हराकर कमल खिला दिया है