काव्य संध्या में हुई बहुरंगी गीतों एवं कविताओं की प्रस्तुति, हुआ डॉ. के के कुलश्रेष्ठ का सम्मान

 

ग्वालियर / मुरार, ग्वालियर स्थित एक निजी स्कूल में विशिष्ट काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया। जिसकी अध्यक्षता मुंबई (महाराष्ट्र)से पधारे डॉक्टर के. के. कुलश्रेष्ठ ने की। कार्यक्रम के आयोजक वरिष्ठ नवगीतकार बृजेश चंद्र श्रीवास्तव रहे। इस अवसर पर डॉक्टर के के . कुलश्रेष्ठ को सम्मानित किया गया। कार्यक्रम का संचालन राम चरण ‘रुचिर ‘ ने किया।
प्रारम्भ में अतिथि एवं अन्य गीतकारों द्वारा मां सरस्वती की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर दीप प्रज्ज्वलित किया गया। इस अवसर पर स्वरचित सरस्वती वंदना डॉक्टर के के कुलश्रेष्ठ ने प्रस्तुत की। इसके पश्चात् बृजेश चंद्र श्रीवास्तव ने डॉक्टर के के कुलश्रेष्ठ को शाॅल,श्रीफल एवं पुष्पहार से सम्मानित किया।
कार्यक्रम में कविताओं व गीतों की प्रस्तुति हेतु उपस्थित वरिष्ठ नवगीतकार बृजेश चंद्र श्रीवास्तव, वरिष्ठ गीतकार राजेश शर्मा ,ललित मोहन त्रिवेदी, सुरेंद्र पाल सिंह कुशवाहा , रोशन मनीष , जगदीश महामना,महेंद्र मुक्त, रामचरण ‘रुचिर’ एवं मुकेश गुप्ता आदि ने भी डॉ कुलश्रेष्ठ को पुष्पहार भेंट कर स्वागत किया।
कविताओं एवं गीतों की प्रस्तुति हेतु संचालन कर रहे कवि रामचरण रुचिर ने सर्वप्रथम रोशन मनीष को आमंत्रित किया। उन्होंने अपने गीत की प्रस्तुति देते हुए कहा,
“कौन आता साथ मेरे,
अनवरत मुझको रहीं कठिनाइयां दिन-रात घेरे।
इसी क्रम में जगदीश गुप्त महामना ने सुंदर काव्यपाठ करते हुए कहा ।
“गुंचा ए गुलबदन महकता हुआ
जुल्फ से पाजेब तक खनकता हुआ।”
अगले क्रम में महेंद्र मुक्त ने भावपूर्ण गीत प्रस्तुत करते हुए सभी को भाव विभोर कर दिया।
उन्होंने कहा,
“स्मृतियों की एक पोटली में रक्खा भंडार ।
फुरसत होगी तब मैं तुमको दिलाऊंगा यार ।”
अगले क्रम में सुरेंद्र पाल सिंह कुशवाहा के द्वारा ग्रामीण जीवन पर सुंदर गीतों की प्रस्तुति दी गई। इसी क्रम में मुकेश गुप्ता ने भी एक लघु कविता प्रस्तुत की।
कार्यक्रम का संचालन कर रहे रामचरण रुचिर ने कहा,
“संज्ञान लें सब जान लें अनुमान लें अगर।
हम हमारी नीतियों को साफ रखलें तो सही।”
अगले क्रम में सुंदर गीतों की बानगी हेतु धीरेंद्र गहलोत “धीर ” डबरा को आमंत्रित किया गया।
उन्होंने गीत प्रस्तुत करते हुए कहा,
“लेकर कलम का दान बड़भागी बनें। हम सृजन के मौन सहभागी बनें ।”
इसी प्रकार मधुर गीतों के गीतकार राजेश शर्मा जी ने अपने सुंदर दोहे व गीत प्रस्तुत करते हुए कहा ,
“एक अभागा पेड़ है, दोनों का आवास‌‌।
पात पात पतझर रहे, डाल-डाल मधुमास ‌।।
इसके साथ ही मधुर गीत पढ़ते हुए उन्होंने कहा,
“हमें फिर पास ले आया इसी आभास का होना।
तुम्हारा गोत्र है मृगजल हमारी जाति मृग छोंना।”
इसके पश्चात् वरिष्ठ गीतकार ललित मोहन त्रिवेदी ने गीत पढ़ते हुए कहा,
“पहने लाख गेरुआ बाने ,
जोगी का मन नहीं ठिकाने।”
उसके पश्चात वरिष्ठ नवगीतकार कार्यक्रम संयोजक बृजेश चंद्र श्रीवास्तव में बहुत ही सुंदर की स्तुति देते हुए कहा,”
“बीते पल को अनायास ही पल भरता है। सूरज उगता है ढलता है।”
शीर्ष में कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे डॉक्टर के के कुलश्रेष्ठ ,महाराष्ट्र ने बहुत सुंदर दोहे गीत प्रस्तुत करते हुए कहा,
मैं तो तेरी बांसुरी जैसे चाहे फूंक।
विरह मिलन अब एक से मिटी हिए की हूक।।
गीत पढ़ते हुए उन्होंने कहा ,
डालों पर नव पात आ गए जकड़न टूटी।
गात भी आ गए प्रकृति ने अंगणाई लेली।”
कार्यक्रम के अंत में सभी का आभार प्रदर्शन आयोजक बृजेश चंद्र श्रीवास्तव ने किया। कार्यक्रम बहुत ही उत्कृष्ट एवं अविस्मरणीय रहा।

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