ग्वालियर/परम पिता परमात्मा की भव्य दिव्य कथा हमारे भीतर व्याप्त अंधकार को दूर करती है। जैसे जैसे भगवान की कथा में हमारी आशक्ति बढ़ती जाती है, हमारे भीतर का अहंकार दूर होता चला जाता है। यह विचार पं सतीश कौशिक ने विवेकानंद नीडम एड्रेस कॉलोनी में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के दूसरे दिन शुकदेव के जन्म एवं परिक्षत के जन्म की कथा के दौरान व्यक्त किए।
पं. सतीश कौशिक ने संगीतमय भागवत कथा का श्रवण कराते हुए कहा कि हम दूसरों के धन वैभव को देखकर हमेें लगता है कि हमसे ज्यादा सुखी और लोग हैं, लेकिन सच्चा सुख भगवन नाम हैं। जैसे जैसे हम भगवत नाम में लीन होते चले जाते हैं। जीवन का आनंद परमानंद में बदलने लग जाता है। उन्होंने बताया कि गर्भवती माता यदि उचित आहार विहार करते हुए नियम संयम अपनाती हैं, तो उनका पुत्र सदाचारी और भगवान का भक्त बनेगा, इसलिए नौमाह सत्य, दया, दान, ममता को आत्मसात एक बार भोजन कर भगवत भक्ति में लीन रहते हुए भगवान से उनके जैसे तेजस्वी पुत्र की कामना करें। गर्भवती महिलाएं अधिक मिर्च मसाले वाला भोजन न खाएं, क्योंकि इससे गर्भस्थ शिशु को कष्ट होता है। उन्होंने कहा कि भगवान मानने का विषय नहीं नहीं हैं,बल्कि अपनाने का विषय है।