झारखंड की सियासत में क्या चल रहा है, क्यों सीटी बजा रहे हैं हेमंत सोरेन
बिहार के गांवों में बच्चे एक खास खेल खेलते हुए गुनगुनाते हैं – दिल्ली से चिट्ठी आई, रास्ते में गिर गई, कोई देखा है… फिर खेल शुरू होता है और इसमें शामिल खिलाड़ी एक-एक कर आउट होते जाते हैं. अंत में जो एक बच्चा बचता है, उसे इस खेल का विजेता घोषित कर दिया जाता है.
झारखंड की सियासत की ताजा हालत बिहार के बच्चों के उस खेल की तरह हो गई है.
मीडिया में चल रही खबरों के मुताबिक भारत के चुनाव आयोग ने झारखंड के राज्यपाल रमेश बैस को बंद लिफाफे में एक चिट्ठी भेजी है. दिल्ली से चली वह चिट्ठी 25 अगस्त की सुबह रांची पहुंची. आयोग ने इस चिट्ठी में झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की विधानसभा सदस्यता रदद् करने की सिफारिश की है. अब राज्यपाल को इस मसले पर अंतिम निर्णय लेना है. वे अपने निर्णय से चुनाव आयोग को अवगत कराएंगे, ताकि वहां से हेमंत सोरेन की विधायकी रद्द करने का गजट नोटिफिकेशन जारी किया जा सके. फिर यह नोटिफिकेशन झारखंड विधानसभा के अध्यक्ष को भेजा जाएगा. उसके बाद हेमंत सोरेन विधायक नहीं रहेंगे. क्योंकि, वे मुख्यमंत्री हैं और इसके लिए उनका विधायक होना ज़रूरी है, लिहाजा उन्हें अपने पद से इस्तीफा देना पड़ेगा. इस प्रकार उनकी सरकार गिर जाएगी.
हालांकि, स्थानीय मीडिया में सूत्रों के हवाले से चल रही इन खबरों का कोई आधिकारिक आधार अभी तक सार्वजनिक नहीं है. चुनाव आयोग या राजभवन ने न तो ऐसे किसी पत्र की पुष्टि की है और न इसका खंडन. मतलब, बिहार के बच्चों के उस खेल की तरह दिल्ली से चली चिट्ठी, जो रांची के राजभवन में गिरी है, उसे अभी तक बाहर के किसी आदमी ने नहीं देखा है. सबकुछ अन-आफिशियल है.
बीबीसी ने झारखंड के राज्यपाल के साथ काम कर रहे एक वरिष्ठतम अधिकारी से इस बावत आधिकारिक टिप्पणी या कन्फर्मेशन चाहा था, लेकिन राजभवन सचिवालय ने उसका कोई जवाब नहीं दिया
इसके बावजूद झारखंड का सियासी संकट सुर्खियों में है. इस कारण यहां सत्तासीन झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम), कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) का संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) और इसके नेता मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और मुख्य विपक्षी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) व उसकी सहयोगी आजसू पार्टी के गठबंधन के नेता भी चौकन्ने हैं. दोनों ही पक्ष लगातार बदलते घटनाक्रम के बीच अपनी रणनीति तैयार करने में जुटे हैं.