आज नवमी तिथि दोपहर 2.30 बजे तक रहेगी इसलिए पूजा और विसर्जन के लिए सिर्फ तीन मुहूर्त ही रहेंगे। लेकिन, इस तिथि में दिन की शुरुआत होने से घरों में कुलदेवी पूजा और कन्या भोज के लिए पूरा दिन शुभ रहेगा। वहीं, मानस और रवियोग बनने से खरीदारी और नई शुरुआत के लिए पूरा दिन शुभ रहेगा।

सूर्योदय के वक्त नवमी तिथि होने से इस दिन स्नान-दान और श्राद्ध का पूरा फल मिलेगा। आज ग्रह-नक्षत्रों से मानस और रवियोग बन रहे हैं। इन शुभ योग में सोना, चांदी और अन्य कीमती धातुओं के साथ नए कपड़ों की खरीदारी भी कर सकते हैं।

महानवमी पर महिषासुर मर्दिनी की पूजा
नवरात्रि की नवमी तिथि पर महिषासुर मर्दिनी रूप में देवी की पूजा होती है। पौराणिक कथाओं के मुताबिक इस तिथि पर ही देवी ने महिषासुर को मारा था। इसके बाद देवताओं और ऋषियों ने देवी की महापूजा की थी। इसलिए नवमी पर हवन और महापूजा की परंपरा है।

महापूजा से नौ दिनों की आराधना का फल
पूरी नवरात्रि में अगर देवी पूजा और व्रत-उपवास नहीं कर पाएं तो नवमी पर देवी की महापूजा करने से ही नौ दिनों की देवी आराधना का फल मिल सकता है। मार्कंडेय पुराण के मुताबिक इस दिन देवी दुर्गा की विशेष पूजा करनी चाहिए।

कन्या भोज का दिन
नवरात्रि में महापूजा वाले इस दिन कन्या भोज करवाने से देवी उपासना का पूरा फल मिलता है। ग्रंथों में इस बात का जिक्र है कि नौ दिनों तक कन्या भोज और पूजन नहीं कर सकते तो सिर्फ नवमी पर भी करवाया जा सकता है।

काशी विद्वत परिषद के महामंत्री प्रो. रामनारायण द्विवेदी कहते हैं कि इस दिन एक कन्या की पूजा करने से ऐश्वर्य, दो की पूजा से मोक्ष, तीन की पूजा से धर्म और चार कन्याओं का पूजन करने से राज्य पद मिलता है। इसी तरह बढ़ाते हुए कन्याओं की पूजा करने से विद्या, सिद्धि, राज्य, संपदा और प्रभुत्व बढ़ता है। इस दिन महालक्ष्मी को खीर का भोग लगाने से जीवनभर सुख-समृद्धि बनी रहती है।

स्नान-दान और श्राद्ध की परंपरा
पुरी के ज्योतिषाचार्य डॉ. गणेश मिश्र बताते हैं कि अश्विन शुक्ल पक्ष की नवमी मन्वादि तिथि होती हैं। इसे समझाते हुए कहते हैं कि हर प्रलय के बाद जिस तिथि पर सृष्टि की शुरुआत होती है उसे मन्वादि तिथि कहते हैं। इस दिन दक्ष नाम का मन्वंतर शुरू हुआ था। इसलिए इस दिन तीर्थ स्नान करने से जाने-अनजाने में हुए पाप खत्म हो जाते हैं। नवरात्रि की नवमी पर अन्न, कपड़े और अन्य चीजों का दान करने से अक्षय पुण्य मिलता है। इस तिथि पर श्राद्ध करने की भी परंपरा है। इससे पितर संतुष्ट होते हैं।

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