Narmada Mahotsav 2022 : शरद पूर्णिमा पर दूधिया किरणों से भेड़ाघाट की संगमरमरी वादियों का निखर जाता है अद्भुत सौंदर्य

संस्कारधानी जबलपुर के नर्मदा तट अंतर्गत विश्व प्रसिद्ध जलप्रपात धुआंधार के समीप भेड़ाघाट की नयनाभिराम वादियों में शरदपूर्णिमा के अवसर आयोजित होने वाला नर्मदा महोत्सव अद्भुत आनंददायक होता है। इस दौरान सौंदर्य की नदी नर्मदा की जलतरंग में शरदपूर्णिमा के पूर्णचंद्र की शशिकला अनुपम अठखेली करती है।

सुरेंद्र दुबे. जबलपुर। संस्कारधानी जबलपुर के नर्मदा तट अंतर्गत विश्व प्रसिद्ध जलप्रपात धुआंधार के समीप भेड़ाघाट की नयनाभिराम वादियों में शरदपूर्णिमा के अवसर आयोजित होने वाला नर्मदा महोत्सव अद्भुत आनंददायक होता है। इस दौरान सौंदर्य की नदी नर्मदा की जलतरंग में शरदपूर्णिमा के पूर्णचंद्र की शशिकला अनुपम अठखेली करती है। प्रकृति के सुकुमार चितेरे कवि मैथिलीशरण गुप्त ने चारू चंद्र की चंचल किरणें खेल रही थीं जल-थल-नभ में, जैसी कालजयी कविता पुण्यसलिला नर्मदा का शरद पूर्णिमाकालीन यही मनोहारी दृश्य देखने के बाद रची थी। शरदपूर्णिमा पर नर्मदा में प्रतिबिंबित होने वाले सोलहकला सम्पन्न चंद्रमा के साक्षीत्व में जैसे ही नर्मदा महोत्सव की सरगम छिड़ती है, देखने और सुनने वाले सुधबुध खो बैठते हैं।

ओशो ने संबोधित किया था- धरती का स्वर्ग

भेड़ाघाट में पंचवटी तट से लेकर धुआंधार तक के नर्मदा प्रवाह के अपरिमित सौंदर्य से सम्मोहित होकर विश्व प्रसिद्ध दार्शनिक ओशो ने अपने एक प्रवचन में इस स्थान को धरती का स्वर्ग संबोधित किया था। शरदपूर्णिमा की चांदनी रात में यहां जो अलौकिक दृश्य उभरता है, उसे देखने के बाद प्रत्येक प्रकृति-प्रेमी बरबस ही यही कहने विवश हो जाता है। जैसे ही शरदपूर्णिमा के चंद्रमा की दूधिया किरणें नर्मदा के संगमरमरी आधार से टकराती हैं, नर्मदा की जललहरी में सम्मोहक छवि उभर जाती है, जिसका दर्शन करने वाला अभिव्यक्ति के लाख जतन करने के बाद भी पूरी बात शब्दों में बयां नहीं कर पाता।

2004 से 2022 तक पहुंचा मुक्ताकाशी मंच पर आयोजन का सफर

इस आयोजन को लगभग दो दशक पूरे होने को है। 2004 में नर्मदा महोत्सव का औपचारिक रूप से शुभारंभ हुआ था। भेड़ाघाट नगर पंचायत के तत्कालीन अध्यक्ष अनिल तिवारी बताते हैं कि 2004 से पूर्व भी यह कार्यक्रम शरदोत्सव के रूप में आयोजित हुआ करता था, तब तक उसका स्वरूप अपेक्षाकृत स्थानीय होता था। लेकिन 2004 से सांसद राकेश सिंह ने इस आयोजन को नर्मदा महोत्सव नामकरण के साथ विशेष महत्व देना शुरू किया। फिर क्या था, चंद वर्षों में नर्मदा महोत्सव स्थानीयता की सीमा-रेखा को तोड़कर प्रादेशिक व राष्ट्रीय ही नहीं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चित हो गया। ऐसा इसलिए क्योंकि सांसद सिंह के प्रयासों से शासन-प्रशासन की ओर से भरपूर सहयोग किया जाने लगा। गीत-संगीत व नृत्यकला की दुनिया के ख्यातनाम चेहरे नर्मदा महोत्सव के मुक्ताकाशी मंच पर अपनी कला का इंद्रधनुष खिलाने लगे। 2022 में भी पूर्व की भांति अपने-अपने क्षेत्रों के नामवर कलाकारों को आमंत्रित किया गया है। अतएव, वैश्विक महामारी कोरोना के कारण दो वर्षीय व्यतिक्रम उपरांत नर्मदा महोत्सव एक बार फिर रंग जमाने तैयार है।

 

नर्मदा महोत्सव के मुक्ताकाशी मंच पर देश के प्राय सभी बड़े कलाकार अपनी प्रस्तुति दे चुके हैं। शास्त्रीय संगीत से लेकर सिने संगीत की दुनिया के बड़े हस्ताक्षरों की आवाज शरदूपूर्णिमा पर नर्मदा की वादियों में गूंज चुकी है। नृत्यकला के क्षेत्र में कई नामी-गिरामी कलाकारों की नृत्यनाटिकाओं ने इस आयोजन में चार चांद लगाए थे। यह परम्परा यूं ही सालों-साल कायम रहेगी। इसी आशा व विश्वास के साथ नर्मदा महोत्सव को गति देने में जिम्मेदार विभाग पूर्ण मनोयोग से जुटे हुए हैं। सबसे खास बात यह कि इस आयोजन के दो दिवसीय फलक में स्थानीय कलाकारों व लोक संस्कृति से जुड़े कलासाधकों को भी अपनी कला का जौहर दिखाने का अवसर दिया जाता है।

स्थानीय से लेकर दूर-दूराज व विदेशों तक से आते हैं दर्शक

नर्मदा महोत्सव की ख्याति का आलम यह है कि स्थानीय व दूर-दराज से लेकर विदेशों तक के दर्शक जबलपुर खिंचे चले आते हैं। विदेशी सैलानी पंचवटी तट के ऊपरी गार्डन की टेरिस से बंदरकूदनी की तरफ का नजारा कैमरों से अधिक अपनी आंखों में कैद करते दिखते हैं। वे यहां जो कुछ देखते हैं, उसे देखने के बाद अवाक से रह जाते हैं।

 

 

 

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