आयोजन का 270वां वर्ष रहा : करीब एक किलोमीटर क्षेत्र में हुए इस लोक नाटय रंग मंच के कार्यक्रम के दौरान लोगों का उत्साह देखते ही बन रहा था। आजाद चौक व कंस चौराहा के अलावा इस बार गवली मोहल्ला में भी वाक्युद्ध का आयोजन दिलचस्प रहा। परंपरा का यह 270 वां वर्ष रहा।
इस आयोजन को देखने के लिए बड़ी संख्या में जिले सहित आसपास के क्षेत्र के लोग भी पहुंचे। घमंड व अत्याचार के प्रतीक कंस के पुतले को एक सप्ताह पहले से ही कंस चौराहे पर बैठा दिया गया था। कंस के इस दरबार का विनाश आज दशमी के दिन किया गया।
उल्लेखनीय है कि शाजापुर शहर के सोमवारिया में कंस के पुतले को बैठा दिया जाता है। देश के मथुरा के बाद शाजापुर में इस परंपरा का सैकड़ों सालों से इस परपंरा का निर्वहन किया जा रहा है। मथुरा के बाद शाजापुर में करीब 269 वर्षों से यह आयोजन लगातार हो रहा है। आयोजन समिति के संयोजक तुलसीराम भावसार, पदाधिकारी अजय उदासी बताते हैं कि आयोजन का यह 270 वां वर्ष है।
दशमी की शाम को देव व दानव की वेशभूषा में कलाकार तैयार हुए। इसके पश्चात देव व दानवों का जुलूस निकाला गया। यह जुलूस बालवीर हनुमान मंदिर से, धानमंड़ी चौराहा, किलारोड, छोटा चौक होते हुए आजाद चौक में पहुंचा। यहां पर रात में देव व दानवों में चुटीले संवादों का वाक युद्ध हुआ। पारंपरिक वेशभूषा में सजे धजे कलाकार देर तक वाक युद्ध करते रहे।
चुटीले संवादों का लोगों ने लुत्फ लिया। रात को कलाकार आजाद चौक से सोमवारिया बाजार में कंस चौराहा पर पहुंचे। कंस चौराहा पर भी वाक युद्ध हुआ। गवली समाजजनों के पहुंचने पर वरिष्ठों का सम्मान किया गया। इसके पश्चात रात 12 बजते ही कंस वध किया गया। पांरपरिक वेषभूषा में श्रीकृष्ण बने कलाकार द्वारा कंस के पुतले का वध किया गया। सिंहासन से नीचे गिरते हुए पुतले को गवली समाजजन लाठियां भांजते हुए पीटते हुए घसीटते हुए ले गए।
ढाल व तलवार लिए कंस का पुतला
आयोजन समिति द्वारा चौराहे पर जो कंस का पुतला तैयार किया गया था उसके एक हाथ में तलवार तो दूसरे हाथ में ढाल थी।