एफआईआर निरस्त करना है या नहीं, यह सक्षम अदालत तय करेगी

 

जबलपुर/ हाई कोर्ट ने एक आपराधिक प्रकरण में महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए साफ किया कि एफआईआर निरस्त करना है या नहीं, यह सक्षम अदालत तय करेगी। न्यायमूर्ति मनिंदर सिंह भट्टी की एकलपीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता फारेस्ट रेंज आफिसर पर जो आरोप लगे हैं, उनकी जांच जरूरी है। इसलिए इस स्तर पर एफआइआर पर हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने याचिकाकर्ता को यह स्वतंत्रता दी कि वह आरोपों के संबंध में विधिवत रूप से सक्षम कोर्ट में आवेदन पेश कर सकता है। इस टिप्पणी के साथ कोर्ट ने याचिका का निराकरण कर दिया।
डिंडोरी के समनापुर में फारेस्ट रेंज आफीसर के पद पर पदस्थ मयंक पांडे ने याचिका दायर कर उसके अधीनस्थ द्वारा दर्ज एफआइआर को चुनौती दी थी। फारेस्ट गार्ड गंगाराम मरावी ने याचिकाकर्ता के खिलाफ जातिगत अपमान और धमकी देने का आरोप लगाते हुए एफआइआर दर्ज कराई थी।

याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मनीष दत्त ने दलील दी कि उच्च अधिकारी की हैसियत से मयंक ने कई अधीनस्थ अधिकारियों को 18 जनवरी, 2023 को नोटिस जारी किए थे और उन्हें अपने दायित्व निर्वहन नहीं करने पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की चेतावनी भी दी थी। उन्होंने दलील दी कि इस नोटिस से नाराज गंगाराम ने याचिकाकर्ता के विरुद्ध एफआइआर दर्ज करवा दी। इसी मामले में जो गवाह पेश किए गए, वे सभी अधीनस्थ कर्मी हैं, जिन्हें याचिकाकर्ता ने नोटिस जारी किए थे। अधिवक्ता दत्त ने बताया कि जिस घटना के आधार पर एफआइआर दर्ज की गई, वो 16 जनवरी की है। याचिकाकर्ता ने 18 जनवरी को नोटिस जारी किया और शिकायत 20 जनवरी को दर्ज कराई गई। वहीं शासन की ओर से उप महाधिवक्ता स्वप्निल गांगुली ने आपत्ति पेश करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता के विरुद्ध जो आरोप हैं, उसकी जांच सक्षम न्यायालय ही कर सकती है। उन्होंने कहा कि आरोप सही हैं या गलत, यह तय करने का अधिकार ट्रायल कोर्ट को है, इसलिए मामले में इस स्तर पर हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता।

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