जरूरतमंत पत्रकारों का हक छीनने के घोर अपराधी हैं जनसंपर्क विभाग के अधिकारी, बालमुकुंद सिटोके और आत्‍माराम शर्मा को जनसंपर्क विभाग ने दिये 35-35 लाख के विज्ञापन, क्‍या सीपीआर और डीपीआर के आंख के नीचे हो रहा विज्ञापनों का गोरखधंधा?

 

बालमुकुंद सिटोके और आत्‍माराम शर्मा को जनसंपर्क विभाग ने दिये 35-35 लाख के विज्ञापन प्रदेश में लगातार भ्रष्टाचार कम होने की बात करने वाले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अपने ही विभाग में भ्रष्टाचार को रोकने में असफल हुए हैं। दरअसल मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के अंतर्गत प्रदेश का जनसंपर्क विभाग आता है। इसी विभाग में कार्यरत अधिकारी/कर्मचारियों ने किस तरह का भ्रष्टाचार मचा रखा है इसका खुलासा विगत दिनों आरटीआई में हुआ है। रिपोर्ट के अनुसार जनसंपर्क विभाग ने अपने ही विभाग में कार्यरत बालमुकुंद सिटोके के परिवार के लोगों को 35 लाख से अधिक का विज्ञापन दिया है। वहीं माध्‍यम में कार्यरत आत्‍माराम शर्मा के परिवार वालों को 35 लाख का विज्ञापन दिया है। सिटोके की पत्नी और परिवार के अन्य सदस्यों के नाम पर 02 दैनिक समाचार पत्र, 03 से अधिक वेबसाइट और 02 मासिक पत्रिका के नाम पर हैं। जिन पर लाखों रुपए का विज्ञापन लिया है। जनसंपर्क विभाग ने यह भ्रष्टाचार अपने ही विभाग में करके जरूरतमंत पत्रकारों का हक छीनने का घोर अपराध किया है। आपको बता दें कि बालमुकुंद सिटोके जनसंपर्क विभाग में सम्मिलित अखबारों को सूची की कमेटी में था। सूत्रों का कहना है कि सिटोके ने लगभग 250 अखबारों को 30-40 प्रतिशत कमीशन लेकर इस सूची में सम्मिलित किया था। यह वे अखबार हैं जो केवल जिस दिन विज्ञापन प्रकाशित होता है उसी दिन छपते हैं। वर्तमान में सिटोके के पास करोड़ों की प्रापर्टी है। मप्र के कई अखबारों को विज्ञापन देने में उसने खूब पैसा कमाया है। बालमुकुंद सिटोके ने इतना धन अर्जन कैसे किया। यह भी आश्चर्य की बात है, वैसे तो मध्यप्रदेश और भ्रष्टाचार एक दूसरे का पर्याय बन चुके हैं पर ऐसे में विभाग प्रमुख अपनी आंखें कैसे मूंद सकते हैं। ये एक बड़ा आश्चर्य है। वैसे इस मामले में मध्यप्रदेश सिविल सेवा(आचरण) नियम, 1965 की कंडिका क्रमांक 16, 17, 18 एवं 19 का उल्लंघन के बावजूद इन पर कार्यवाही नहीं की गई और पता नहीं विभाग प्रमुखों ने अपने किस हित के खातिर ऐसा भ्रष्टाचार होने दिया।

हालांकि विभाग के मंत्री खुद मुख्‍यमंत्री हैं। हो सकता है कि विज्ञापनों को लेकर जनसंपर्क विभाग में हो रहे गोरखधंधे की सूचना उन्‍हें न हो लेकिन इतना तय है कि इस चुनावी साल में जनसंपर्क विभाग के माध्‍यम से सरकार की छबि खराब होती जा रही है। यदि यह विभाग किसी अन्‍य के पास होता तो विभाग की जानकारियां भी उन तक पहुंचती रहती और पत्रकारों की पहुंच भी विभाग के मंत्री तक हो जाती। आज तो ऐसे कुछ ही पत्रकार हैं जो मुख्‍यमंत्री तक पहुंच पाते हैं और अपनी बात रख पाते हैं।

गौरतलब है कि इस समय सरकारी नौकरी के साथ पत्नियों के नाम से इस कारोबार से इनके बारे-न्‍यारे हो रहे हैं। जो लोग सूचना के अधिकार को लेकर उत्साहित हैं, उन्हें मेरी सलाह है कि इस चक्कर में न पड़ें तो बेहतर है। आप भले ही अच्छे उद्देश्य से इसे आजमायें, आपकी छवि अलग ही बना दी जाती है। फिर और कुछ करने लायक रह पाना मुश्किल होता है। दस्तावेज तभी काम के होते हैं जब संस्थाएं ईमानदार व जीवित हों? यदि वहां भी ऐसे ही आई.पी.एस., आई.ए.एस. या अन्य अधिकारी बैठे हों जो विधानसभा या संसद में बने कानूनों को ही मानने से इंकार कर देते हैं? ऐसे संगठित भ्रष्टाचार के संरक्षक हों तो ये दस्तावेज क्या करेंगे? और इनके भी ऊपर सबसे भ्रष्ट सत्ता है जो ऐसे अधिकारियों को इसी उद्देश्य से संरक्षित करती है। आप अलग-थलग पड़ जायेंगे सो अलग।

*क्‍या सीपीआर और डीपीआर की सहमति के बिना मिल सकते हैं लाखों के विज्ञापन?*

जनसंपर्क विभाग के सीपीआर और डीपीआर, जिनकी ईमानदारी के कसीदे कई पत्रकार साथियों ने अपने अखबारों में गढ़े हैं। इनमें अभी-अभी अवार्ड से सम्मानित कथित ईमानदार अधिकारी भी हैं जिनकी जानकारी में सब चलता रहा है। कहा भी जाता है कि जनसंपर्क विभाग में डीपीआर की सहमति के बगैर पत्‍ता भी नहीं हिलता है। विभाग से जारी होने वाले सभी छोटे-बड़े विज्ञापन इनकी अंतिम मुहर लगने के बाद ही जारी होते हैं। वैसे भी विभाग से आम पत्रकारों को विज्ञापन मिलना बड़ा ही मुश्किल है। जिसे हम साल भर में आम पत्रकारों को मिलने वाले 15-15 हजार के दो बार के विज्ञापनों से देख सकते हैं। तमाम माथापच्‍ची करने के बाद ये विज्ञापन मिलते हैं। वहीं ये रसूखदार अफसर अपने ही विभाग के उच्‍च/निम्‍न अधिकारियों/कर्मचारियों के परिवार वालों के नाम से दर्ज पत्र-पत्रिकाओं को एक झटके में लाखों का विज्ञापन जारी कर देते हैं। यहां पर इन सीपीआर और डीपीआर जैसे अधिकारियों को नियम कायदे दिखाई नहीं देते हैं। इसलिए कहा जा रहा है कि इस समय जनसंपर्क विभाग में अंधेर हो रहा है। नियम कायदों को ताक पर रखकर खुली लूट मची हुई है। पत्रकारिता जगत में इसका बहुत ही बुरा संदेश जा रहा है।

सूचना के अधिकार के तहत जनसम्पर्क विभाग में खुले अकाउंट की तारीख से 16 नवंबर 2022 तक कुल प्राप्त विज्ञापनों की राशि मांगी गई थी, जिसके अनुसार बालमुकुन्द सिटोके की पत्नी मधु सिटोके जिनके नाम 06 टाइटल हैं। उनके दो अखबार जो सूची में हैं, क्रमशः 13,35,288 रु. एवं 9,38,669 रु.। दो साप्ताहिक अखबार को क्रमशः 1,70,000 रु. एवं 18,000 रु.। दो मासिक पत्रिकाओं को क्रमशः 2,05,000 रु. एवं 9,44,000 रु. का विज्ञापन मिला है। वहीं माध्यम के अधिकारी आत्माराम शर्मा की पत्नी की एक मासिक पत्रिका को 1,93,750 रु. एवं उसी नाम की वेबसाइट को 22,85,000 रु. का विज्ञापन मिला है।

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