ग्वालियर-चम्बल की भूमि से अटूट रिश्ता रहा है, भिंड में परिवीक्षाधीन अवधि, उसके बाद ग्वालियर में अति. पुलिस अधीक्षक एवं मुरैना में पुलिस अधीक्षक और अब ग्वालियर में पौने तीन साल की कप्तानी करके ग्वालियर-चम्बल मानों घर जैसा लगने लगा था।
यहां के नागरिकों, मीडियाबंधुओं तथा पुलिस के मेरे साथियों ने इतना सम्मान और स्नेह दिया जो कि मैं शब्दों में बयां नहीं कर सकता। मेरे कैरियर के ना भूलने वाले पौने तीन साल यहां निकले हैं। जब मैने यहां ज्वाइन किया था तो उप चुनावों और कोरोना की दोनों लहरें, तमाम धरना प्रदर्शन, बड़ी-बड़ी घटनाएं उन सभी में टीम वर्क व आप लोगो के सहयोग से सफलता मिली, यहां मेरे बिताए गये एक-एक दिन शायद ही में कभी भूल पाऊं।
ग्वालियर के नागरिकों का स्नेह और उनकी यादे मेरे ह्दय में हमेशा ताजा रहेंगी। वक्त ने चाहा तो जिंदगी के मोड़ पर मुलाकात होगी।