ये कहानी है उस हरफन मौला निर्माता – निर्देशक की, जिसके अकाउंट में सिर्फ तीन पूरी, एक आधी और एक शुरू होकर कुछ ही समय मे बंद हुई फिल्में थी …लेकिन उसने पूरे हिंदी फ़िल्म जगत में हलचल मचा दी थी, ‘फूल’ (१९४४), ‘हलचल’ (१९५१), ‘मुग़ल-ए-आज़म’ (१९६०), और उसकी हयात में आधी बनी ‘लव्ह अँड गॉड’ (१९८४), और ‘सस्ता खून महंगा पानी’ … लव्ह एंड गॉड, जिसे बाद में के. सी. बोकाडिया ने पूरी की ! ‘करीमुद्दीन आसिफ़’ ये वो शख्स थे …बड़े बड़े सपने देखनेवाले और उन सपनों को किसी भी कीमत पर साकार करनेवाले जिद्दी निर्देशक …उन्होंने अपनी फ़िल्म ‘फूल’ के बाद १९४६ में सलीम अनारकली की प्रेमकहानी पर फ़िल्म बनाना तय किया,फिर काम भी शुरू हुआ …चंद्रमोहन, सप्रू, और नर्गिस जी को …अकबर, सलीम, अनारकली की भूमिकाओं के लिए चुना गया …और मुश्किलों का आना भी शुरू हुआ …१९४७ में हिंदुस्तान – पाकिस्तान विभाजन के बाद निर्माता पाकिस्तान चला गया और फ़िल्म का निर्माण रुक गया …चंद्रमोहन भी गुजर गए ..फिर सब ठहर सा गया …लेकिन ये जिद्दी आदमी रुका नहीं था, उसे उसका ख़्वाब पूरा करना ही था, तलाश जारी थी और आखिरकार उन्हें एक आदमी मिल ही गया … १९५० में शापूरजी पालनजी ने आसिफ साहब को फाइनेंस करने का वादा किया और नए सिरे से मुग़ल-ए-आज़म की शुरुआत हुई …पृथ्वीराज कपूर, दिलीप कुमार, मधुबाला को चुना गया …संवाद और पटकथा लेखन के लिए ‘अमान’ (अभिनेत्री ज़ीनत अमान के अब्बा), ‘वजाहत मिर्ज़ा’, ‘कमाल अमरोही’,’एहसान रिज़वी’ जैसे चार चार दिग्गज लेखकों को जिम्मेदारी दी गई …और ‘शकील बदायूँनी ‘, ‘नौशाद’ साब को गीत और संगीत की …४००० घोड़े और ८००० आदमीयों ने इस फ़िल्म के युद्धदृश्य साकार किए थे …’प्यार किया तो डरना क्या’ इस गीत के फिल्मांकन के लिए शीशमहल का सेट ३५ लाख रुपयों की लागत से बना था, और इस गीत को रंगीन भी बनाया गया था …मधुबालाजी की तबियत उन दिनों ठीक नहीं थी, फिर भी उनके पैरों में भारी भरकम लोहे की बेड़ियां पहनाकर ‘मुहब्बत की झूठी कहानी पे रोये’ ये गीत फिल्माया गया, ताक़ी हर दृश्य वास्तव लगे …उस्ताद बड़े गुलाम अली खां साब को नौशाद मियाँ ने सिनेमा के लिए गानेको कैसे मनाया, ये वोंं ही जाने …ये सब जुटाना आसान नहीं था …आखिर फ़िल्म पूरी हो गई और ५ अगस्त १९६० को प्रदर्शित हुई, और पहले ही फ्रेम से लोगों का दिल जीतने में सफल रही …एक सच्चे, मेहनती फनकार का सपना पूरा हुआ था …करीब करीब डेढ़ करोड़ रुपये खर्च हुए थे …लेकिन सबकी मेहनत रंग लाई थी …हर दृश्य बारीकी से शूट करनेवाले करीमुद्दीन आसिफ साहब की भव्य कल्पना अब परदे पर साकार हो गयी थी …हर गीत लाजवाब था, संवाद दिल को छू लेनेवाले थे …पृथ्वीराज कपूर, दिलीप साब, मधुबाला, मुराद, अजित, दुर्गा खोटे, कुमार, निगार सुलताना हर छोटे बड़े कलाकार का अभिनय बेहद सराहनीय था …इस फ़िल्म के शीशमहल के सेट को देखने कई पर्यटक मुंबई आया करते थे …इस महान कलाकृती को, और इसे बनानेवाले आसिफ साहब और सभी कलाकारों को सदियों तक याद किया जायेगा …सलाम आसिफ़ साब सलाम