प्रदेश के मुख्यमंत्री-श्री शिवराज सिंह जी चौहान, केन्द्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री-श्री नरेन्द्र सिंह जी तोमर, केन्द्रीय नागर विमानन मंत्री-श्रीमंत ज्योतिरादित्य सिंधिया जी, फेडरेशन भोपाल, फिक्की एवं प्रदेश के समस्त चेम्बर ऑफ कॉमर्स को लिखा पत्र
ग्वालियर 7 अगस्त,23। मध्यप्रदेश चेम्बर ऑफ कॉमर्स एण्ड इण्डस्ट्री (एमपीसीसीआई) द्बारा प्रोफेशनल टैक्स को समाप्त करने एवं डीआईसी व एमपीआईडीसी द्बारा विकसित किये गये औद्योगिक क्षेत्रों से सम्पत्ति कर न लिये जाने को लेकर प्रदेश के मुख्यमंत्री-श्री शिवराज सिंह जी चौहान, केन्द्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री-श्री नरेन्द्र सिंह जी तोमर, केन्द्रीय नागर विमानन मंत्री-श्रीमंत ज्योतिरादित्य सिंधिया जी, फेडरेशन भोपाल, फिक्की एवं प्रदेश के समस्त चेम्बर ऑफ कॉमर्स को पत्र प्रेषित किया है।
अध्यक्ष-डॉ. प्रवीण अग्रवाल, संयुक्त अध्यक्ष-हेमंत गुप्ता, उपाध्यक्ष-डॉ. राकेश अग्रवाल, मानसेवी सचिव-दीपक अग्रवाल, मानसेवी संयुक्त सचिव-पवन कुमार अग्रवाल एवं कोषाध्यक्ष-संदीपनारायण अग्रवाल द्बारा प्रेस को जारी विज्ञप्ति में बताया है कि एमपीसीसीआई एवं मध्यप्रदेश के बहुत से व्यवसायिक एवं औद्योगिक संगठनों के द्बारा माननीय मुख्यमंत्री जी को कई बार पत्र के माध्यम से एवं मुलाकातों के दौरान इस बात का अनुरोध किया गया है कि व्यापारियों को जी.एस.टी., आयकर, वैट आदि सहित बहुत सारे करों का सामना करना पड़ता है, जिसकी वजह से मध्यप्रदेश का व्यापारी अपने आपको कर के बोझ से दबा पाता है। व्यापारी अपने व्यापार एवं उद्योग को चलाने के लिए व्यापारी पर इससे संबंधित जितने कर लागू होते हैं, उसका लेखा-जोखा रखता है और शासन को समय-समय पर कर चुकाना होता है, जिसको भारी बोझ तले व्यापारी कर रहा है। इस सबके बावजूद प्रोफेशनल टैक्स, प्रदेश के व्यापारियों से लिया जाता है जबकि भारत सरकार द्बारा निर्धारित जो श्रेणियाँ हैं, उसके अनुसार व्यापारी, आन्त्रप्रन्योर, उद्योगपति और चौथी श्रेणी जिसमें एज्यूकेशन प्राप्त करके सेवा देने का कार्य करते हैं, उनको प्रोफेशनल टैक्स की श्रेणी में रखा जाता है। अत: यह प्रोफेशनल टैक्स व्यापारी या उद्योगपति से लेना अन्याय है। इसकी मांग समय-समय पर चेम्बर ऑफ कॉमर्स सहित प्रदेश के अन्य व्यापारिक एवं औद्योगिक संगठनों द्बारा उठाई जाती रही है व माननीय मुख्यमंत्री जी द्बारा समय-समय पर आश्वासन भी दिया है, लेकिन इसका निराकरण अब तक नहीं हुआ है।
वहीं मध्यप्रदेश औद्योगिक दृष्टि से सम्पन्न प्रदेश नहीं है । इसका कारण यह नहीं है कि यहां भूमि उपलब्ध नहीं है, यहाँ स्किल्ड मैन पॉवर उपलब्ध नहीं है या देश के किसी कोने से कनेक्टिविटी नहीं है। किसी भी उद्योग को लगाने के लिए यह सब सुविधाएं होने के बाद भी म.प्र. औद्योगिक दृष्टि से पिछड़ा हुआ है तो उसका कारण शासन की औद्योगिक नीति है। अन्य प्रदेशों की तुलना में लालफीताशाही हावी है।
एमपीसीसीआई ने पत्र में उल्लेख किया है कि मध्यप्रदेश सरकार को बहुत आवश्यक है कि यहां की औद्योगिक नीति में आमूल-चूल परिवर्तन किए जाये क्योंकि यदि एक एमएसएमई स्थापित होती है तो कम से कम 50 लोगों को रोजगार देने के साथ शासन की कमाऊ पूत होती है। म.प्र. में डीआईसी व एमपीआईडीसी के द्बारा स्थापित औद्योगिक क्षेत्रों में जो उद्योग स्थापित हैं, उनको लीज रेंट, मेंटीनेंस शुल्क डीआईसी व एमपीआईडीसी को देना ही होता है। अतिरिक्त बोझ तब बढ जाता है, जब नगर निगम को भारी-भरकम सम्पत्ति कर भी चुकाना होता है, जबकि समीपवर्ती प्रदेश, यू.पी. व छत्तीसगढ में उद्यमियों को इस सम्पत्ति कर से अलग रखा गया है, जिससे म.प्र. के उद्योगों की समीपवर्ती प्रदेशों से उत्पाद लागत बढ जाती है और वह प्रतिस्पर्धात्मक दृष्टि से पिछड़ जाते हैं।
एमपीसीसीआई ने पत्र के माध्यम से मांग की है कि मध्यप्रदेश के औद्योगिक क्षेत्रों को सम्पत्ति कर के दायरे से दूर रखा जाये। वहीं प्रोफेशनल टैक्स को समाप्त किया जाए। यह म.प्र. के सभी व्यापारिक एवं औद्योगिक संगठनों की बहुत लंबे समय से की जाने वाली मांगें हैं जो कि अब तक पूरी नहीं हुई हैं। आशा है कि आप हमारे पत्र को गंभीरता से लेकर इस पर शीघ्र घोषणा करेंगे। हम यह भी आशा रखते हैं कि हमें इसके लिए आंदोलन का रास्ता नहीं अपनाना पड़ेगा। हमने यह तय किया है कि एक माह के अंदर यदि इसकी घोषणा कर, क्रियान्वयन नहीं किया गया तो मजबूरन हमें मध्यप्रदेश के सभी व्यवसायिक एवं औद्योगिक संगठनों को साथ लेकर इसके लिए आंदोलन करना पड़ेगा।