भिंड / भिंड जिले के नगर लहार के प्रसिद्ध धार्मिक स्थल तालेस्वर सरकार मंदिर प्रांगण में प्रदेश कार्यसमिति सदस्य अम्बरीष शर्मा गुड्डू भैया द्वारा अयोजित श्री रामकथा के चतुर्थ दिवस की कथा में पूज्य महाराज स्वर सम्राट राजन जी महाराज ने कथा सुनाते हुए कहा कि सम्पूर्ण राज्य में आनन्द मनाया जाने लगा। महाराज के चार पुत्रों के जन्म के उल्लास में गन्धर्व गान करने लगे और अप्सराएं नृत्य करने लगीं। देवता अपने विमानों में बैठ कर पुष्प वर्षा करने लगे। महाराज ने उन्मुक्त हस्त से राजद्वार पर आए भाट, चारण तथा आशीर्वाद देने वाले ब्राह्मणों और याचकों को दान दक्षिणा दी। पुरस्कार में प्रजा-जनों को धन-धान्य तथा दरबारियों को रत्न, आभूषण प्रदान किए गए। चारों पुत्रों का नामकरण संस्कार महर्षि वशिष्ठ के द्वारा किया गया तथा उनके नाम रामचन्द्र, भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न रखे गए आयु बढ़ने के साथ ही साथ रामचन्द्र गुणों में भी अपने भाइयों से आगे बढ़ने तथा प्रजा में अत्यंत लोकप्रिय होने लगे। उनमें अत्यन्त विलक्षण प्रतिभा थी जिसके परिणामस्वरू अल्प काल में ही वे समस्त विषयों में पारंगत हो गए। उन्हें सभी प्रकार के अस्त्र-शस्त्रों को चलाने तथा हाथी, घोड़े एवं सभी प्रकार के वाहनों की सवारी में उन्हें असाधारण निपुणता प्राप्त हो गई। वे निरन्तर माता-पिता और गुरुजनों की सेवा में लगे रहते थे उनका अनुसरण शेष तीन भाई भी करते थे। गुरुजनों के प्रति जितनी श्रद्धा भक्ति इन चारों भाइयों में थी उतना ही उनमें परस्पर प्रेम और सौहार्द भी था। महाराज दशरथ का हृदय अपने चारों पुत्रों को देख कर गर्व और आनन्द से भर उठता था आगे की कथा में बोलते हुए पूज्य राजन जी महाराज ने कहा कि विश्वामित्र क्षत्रिय वंश में उत्पन्न हुए थे किन्तु कुछ कारण वश उन्होने कठोर तपस्या करके ब्रह्म ऋषि का पद प्राप्त किया। विश्वामित्र ब्रह्म ज्ञानी बन गये थे। अब वह काम क्रोध मद लोभ को पूर्णतया जीत चुके थे। वह यज्ञ किया करते थे। सनातन धर्म में यज्ञ करना वैदिक विधान है। उनके यज्ञ में राक्षस बाधा डाला करते थे और नष्ट भी कर देते थे। ब्रह्मऋषि होने के कारण वह किसी की हत्या नहीं कर सकते थे। उन्हें मालूम हो चुका था कि, भगवान विष्णु का रामावतार राजा दशरथ के घर में हो चुका है। अतएव वह यज्ञ की रक्षा करने के लिए भगवान राम और उनके छोटे भाई लक्ष्मण को अयोध्या के राजा दशरथ से कुछ दिनों के लिए मांग कर ले आये। ब्रहमऋषि जानते थे कि, राम को महाबली राक्षसराज रावण से सामना होगा। इसीलिए इन्होने राम और लक्ष्मण को हर प्रकार के दिव्यास्त्रों का ज्ञान दे कर इन्हें हर तरह से सबल और युद्ध में अजेय बना दिया यहीं आज के बिहार प्रान्त के बक्सर में विश्वामित्र जी के यज्ञ की रक्षा करते समय ताड़का नामक राक्षसी से इनकी भिड़न्त हुई जिसमें इन्होने ताड़का बध करके ऋषि का यज्ञ निष्कंटक पूर्ण कराया रास्ते में चलते वक्त विश्वामित्रजी गौतम ऋषि के आश्रम में रुके और अपने साथ राम और लक्षमण को भी गये वहीं कुछ दूरी पर अहिल्या विक्षिप्ता अवस्था में बैठी थीं उनकी सोचने समझने की शक्ति क्षीण हो गई थी इसीलिए लोग उन्हें पाषाण कहा करते थे ऋषि के कहने पर भगवान ने मां अहिल्या जी का उद्धार किया कथा में पूर्व बिधायक मथुरा प्रसाद महंत,पूर्व विधायक राकेश शुक्ला एवम भक्तजनों का जनसैलाब उमड़ता नजर आया इस मौके पर कथा यजमाम नरेश जी शर्मा ने सभी भक्तों से अपील की है कि कथा श्रवण कर भण्डारा प्रसाद पाकर अपने जीवन को धन्य बनाएं ।