शैक्षणिक भ्रमण के दूसरे दिन पश्चिमी मंदिर समूह एवं संग्रहालय को देखा

 

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खजुराहो की विश्व प्रसिद्ध अप्सराएं और विशालकाय मन्दिरों की श्रृंखलाए, चंदेल वास्तुकला के वैभव का ऐसा अनूठा अनुभव कराती हैं कि पर्यटक, कलाप्रेमी किंकर्तव्यविमूढ़ हुए बिना नहीं रह सकते, जटिल वास्तुकला के उदाहरण मन्दिरों की बाहरी दीवारों पर बने उत्कृष्ट मूर्ति पैनलों, देव कुलिका, चैत्य गवाक्षों के उदाहरणों से अच्छादित हैं। यह किसी भी प्रेक्षक को दाँतो तले अँगुली दबा लेने पर बाध्य कर देती हैं, दसवीं सदी के अन्त तक चंदेल वास्तुकला नागरा शैली के चरमोत्कर्ष का साक्षात उदाहरण थी, इन्हीं शब्दों के साथ प्रो एस डी सिसोदिया जी ने जीवाजी विश्वविद्यालय के प्राचीन भारतीय इतिहास संस्कृति एवं पुरातत्व अध्ययन शाला के छात्रों के द्वितीय एवं अन्तिम दिवस खजुराहो शैक्षणिक भ्रमण का आगाज किया। अन्तिम दिन दल ने 25 मन्दिरों का अवलोकन किया, और इसके साथ शिल्प, वास्तु एवं उससे जुडी पौराणिक और लोककथाओं की विशेष जानकारी ली। महत्वपूर्ण रूप से खजुराहों क्षेत्र के आयताकार चौसठ योगिनी मन्दिर, कन्दरिया महादेव के शेखरी शिखर, अत्याथिक कलात्मक विक्षिप्त विमान, मण्डपों की श्रृंखला, चित्रगुप्त मन्दिर के विभिन्न अंगों जैसे सल्लान्तरों में मिथुन दृ्श्य, ऊरूश्रृंगो को पहचानना, ग्रीवा, आमलक आदि को बताया, लक्ष्मण मन्दिर, मतंगेश्वर के फमांसना शिखर, विश्वनाथ मन्दिर के पंचायतन स्वरूप, मन्दिर की बाहरी भाग पर विभिन्न युद्धों के दृश्य तथा शिल्पियों के नाम के अभिलेखों पर भी विशेष तौर पर जानकारी दी। साथ ही स्थापत्य के विभिन्न आयामों, मुर्तियों के बेहद अलंकृत चित्रण, अप्सराओं के केश श्रृंगार पर और शोध की संभावना पर विचार व्यक्त किए।

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ग्रुप ने पूर्व के वामन मन्दिर, ब्रह्मा मन्दिर, जवारी मन्दिर इत्यादि के बारे में जानकारी ली। तत्पश्चात प्रो सिसोदिया ग्रुप को पुरातत्व संग्रहालय ले गये, जहाँ सहायक अधीक्षक श्री महेन्द्र पाल जी से मुलाकात हुई और उन्होंने संग्रहालय में चंदेल वंश तथा संग्रहालय में स्थिति कुछ विशिष्ट मुर्तियों, पैनलों के बारे में संक्षिप्त आख्यान दिया, तथा चंदेल कला से जुड़े आइकोनोग्राफी पहलुओं पर छात्रों की शंकाओं का निवारण किया। विशेषतौर पर मन्दिर निर्माण में ग्रेनाइट और बलुआ पत्थर के प्रयोग, नृत्य गणेश की भाव भंगिमा में बदलाव, महिषासुर मर्दिनी के विभिन्न नाटकीय दृश्यों, सुरा सुन्दरी के वैभवपूर्ण रूप, शैव परिवार से जुडे निरूपण, मातृदेवियोंं पर विस्तृत चर्चा की। इस अवसर पर राहुल, सौरभ राजपूत, योगेश, विवेक इन्दोरिया, सामीन खान, प्रद्युम्न नामदेव, साक्षी बाथम, शिखा बाल्मीकि, पूर्णिमा, सागर कुशवाह, अजीत परमार, अमन भदौरिया, मोनू, तेजेन्द्र, मरजाद आदि उपस्थित रहे।

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सायंकाल खजुराहो से विदा लेते समय छात्र, चंदेला वास्तुकला के वैभव को अपनी स्मृति में संजोए, एकबार पुनः देखने की इच्छा रखकर, वापस अपने गंतव्य की ओर बढ चले, मार्ग में प्रो सिसोदिया जी ने छात्रों को बरूआ सागर के जराई मठ का भी भ्रमण करवाया और मध्य भारत की प्राचीन शैव मठ परम्परा से अवगत करवाया साथ ही शैव मत के अनुरूप स्थानीय वास्तुकला बदलावों की ओर भी इंगित किया। छात्रों के अनुसार खजुराहों शैक्षणिक ट्रिप बेहद सफल रहा, उनके लिए यह एक अविस्मरणीय और जानकारी प्रद अनुभव रहा । ट्रिप की संकल्पना और संपादन लिए छात्रों ने प्रोफेसर शान्तिदेव सिसोदिया जी के प्रति विशेष आभार व्यक्त किया और भविष्य में इस तरह के और भी शैक्षणिक भ्रमण की आशा व्यक्त की ।

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